सल्फ्यूरिक अम्ल को कसीस का तेल (oil of vitriol) भी कहते हैं क्योंकि सोलहवीं सदी में Valentine ने इसे हरे कसीस (FeSO4.7H2O)के आसवन से प्राप्त किया था |यह रंगहीन ,तेल जैसा गाढ़ा द्रव (98% सान्द्र H2SO4) होता है|इसे रसायनों का राजा भी कहतें हैं क्योंकि ये एक महत्वपूर्ण रसायन है इसका उपयोग इन्वर्टर की बैटरियों में , कपडे कागज तथा चमड़ा उद्योग में ,निर्जलीकारक के रूप में ,अभिकर्मक के रूप में , यौगिकों तथा औषधियों के निर्माण में उपयोग किया जाता है|
सल्फ्यूरिक अम्ल केऔद्योगिक निर्माण की संपर्क विधि
सिद्धान्त (Principle)
इस विधि में पहले सल्फर (S)को जलाकर SO2 गैस प्राप्त करते हैं, उसके बाद SO2 व O2 को उत्प्रेरक Pt की उपस्थिति में क्रिया कराकर SO3 बनाते हैं जिसे बाद में H2SO4 में अवशोषित कराकर ओलियम (H2S2O7)बनाते हैं |ओलियम में जल मिलकर पुनः H2SO4 प्राप्त कर लेते हैं|
S + O2 ———– > SO2
2SO2 + O2 ———- > 2SO3 + 45.2 kcal (उत्क्रमणीय)
SO3 + H2SO4 ——- > H2S2O7
H2S2O7 + H2O ——-> 2 H2SO4
विधि (Process)
H2SO4 के निर्माण में प्रयुक्त संयंत्र में निम्न क्रम में विभिन्न भागों में प्रक्रियाएं संपन्न होती हैं |
पाइराइट बर्नर (Pyrite burner): यह एक प्रकार की भट्टी होती है |सल्फर या आइरन पाइराइट (FeS2 )को जलाकर सल्फर डाइऑक्साइड प्राप्त की जाती है |
S+ O2 ———– > SO2
4 FeS2 + 11SO2 ———–> 2 Fe2O3 + 8 SO2
धूल अवक्षेपक (Dust precipitator): बर्नर से प्राप्त गैसीय मिश्रण को धूल कक्ष में ले जाया जाता है | इसमें ऊपर से भाप प्रवाहित की जाती है जिससे धूल के कण भाप से भीगकर नीचे बैठ जाते है |
कूलर (Cooler): धूल कक्ष से प्राप्त गैसीय मिश्रण को इसमें ठण्डा किया जाता है | यहाँ से गैसीय मिश्रण को धावन कक्ष में ले जाया जाता है |
धावन कक्ष (Washing tower): इस कक्ष में क्वार्ट्ज (quartz)के टुकड़े भरे होते है तथा ऊपर से जल फव्वारे के रूप में गिराया जाता है जिससे गैस जल में घुलकर शुद्ध हो जाती है | इस गैसीय मिश्रण को शुष्कन टावर में भेजा जाता है |
शुष्कन टावर(Drying tower) : इसमें क्वार्ट्ज के टुकड़े भरे होते है तथा ऊपर से सान्द्र H2SO4 फव्वारे के रूप में गिराया जाता है |सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल नमी को अवशोषित कर लेता है और नीचे से बाहर निकल जाता है | शुष्क गैस (SO2)आगे आर्सेनिक शोधक में ले जाई जाती है|
ऑर्सेनिक शोधक (Arsenic Purifier): इसमें नम Fe(OH)3 रखा होता है जिससे मिश्रण में उपस्थित As2O3 अवशोषित हो जाता है और आर्सेनिक As की अशुद्धि दूर हो जाती है इसके बाद गैसीय मिश्रण को परीक्षण बॉक्स में ले जाते है|
परीक्षण बॉक्स(Testing box ) : गैसीय मिश्रण में धूल के कणों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए यहाँ प्रकाश पुंज को भेजते हैं ,धूल के कण प्रकाश में चमकने लगते हैं | धूलरहित गैस को आगे परिवर्तक में ले जाते हैं |
परिवर्तक (Convertor): यह लोहे का बना होता है इसमें लोहे की ऊर्ध्वाधर नालियां होती हैं इसमें या उत्प्रेरक भरा रहता है | इस कक्ष का ताप लगभग 400 oC होता है जिससे SO2 गैस SO3 में ऑक्सीकृत हो जाती है |
2SO2 + O2 —— > 2SO3 + 45.2 kcal (Reversible)
यह अभिक्रिया उत्क्रमणीय तथा ऊष्मोत्सर्जी होती है अतः कम ताप ,उच्च दाब तथाअधिकऑक्सीजन की उपस्थिति में अग्र दिशा में अभिक्रिया अच्छे से होती है|
अवशोषण टावर (Absorption tower): इसमें क्वार्ट्ज के टुकड़े भरे होते है तथा ऊपर से सान्द्र H2SO4 फव्वारे के रूप में गिराया जाता है |इसमें ऊपर से गिरते सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल में नीचे से ऊपर उठती हुयी गैस एक दुसरे के घनिष्ठ संपर्क में आते हैं और मिलकर ओलियम बनाते हैं जिसे सधूम सल्फ्यूरिक अम्ल भी कहते हैं |
H2S2O7 + H2O ——-> 2 H2SO4
H2SO4 की प्रमुख अभिक्रियाएं
गर्म और सान्द्र H2SO4 की कॉपर से अभिक्रिया :-
गर्म और सान्द्र H2SO4 की जब कॉपर से अभिक्रिया होती है तो पहले CuSO4 बनता है तथा नवजात हाइड्रोजन[H]मुक्त होती है | नवजात हाइड्रोजन H2SO4 के शेष बचे अणुओं से क्रिया करता है तथा उसमें से ऑक्सीजन लेकर जल (H2O)बनाता है |अतः उत्पाद के रूप में सल्फर डाइऑक्साइड (SO2)तथा जल बनते हैं|
H2SO4 + Cu ———– > CuSO4 + 2[H]
H2SO4 + 2[H] ———- > 2H2O + SO2
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2H2SO4 + Cu ————> CuSO4 + 2H2O + SO2 (Net Reaction)
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गर्म और सान्द्र H2SO4 की C (कार्बन) से अभिक्रिया :-
गर्म तथा सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल अपघटित होकर नवजात ऑक्सीजन [O]मुक्त करता है जो कार्बन के परमाणुओं को ऑक्सीकृत करके कार्बन डाइऑक्साइड में बदल देता है|
2H2SO4 ———– > 2SO2 + 2H2O + 2[O]
C +2[O] ————-> CO2
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2H2SO4 + C ———– > 2SO2 + 2H2O + CO2 (Net Reaction)
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SEE THE VIDEO, IN LINK BELOW
https://youtu.be/krX2Q-CY7Wg
Sorry sir ,but abhi tyaar kr raha hu