How to Assign D & L configuration | D-ग्लूकोस क्या है | dl vinyas

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कार्बोहाइड्रेट या शर्करा जैसे ग्लूकोज ,फ्रक्टोज ,माल्टोज आदि जब भी लिखे जाते हैं तो उनके नाम के आगे D अथवा L का प्रयोग किया जाता है | इससे उस शर्करा का एक विशिष्ट विन्यास (configuration) प्रदर्शित किया जाता है | इस D अथवा L विन्यास को सापेक्ष विन्यास या relative configuration आपेक्षिक विन्यास कहते हैं | इसे एमिल फिशर ने सन 1908 में दिया था | उस समय कुछ ही मोनोसैकेराइड ज्ञात थे , उनकी त्रिविम संरचनाएं तो स्पष्ट थी परन्तु उनके विन्यास को एक नाम देकर उनकी पहचान को बताने के लिए फिशर ने एक आधार या मानक तय किया | यह आधार था ग्लिसेरेल्डीहाइड [ CH2OH-CH(OH)-CHO ] के अणु की संरचना जिसके एक त्रिविम रूप को D तथा दूसरे को L माना | इस प्रकार अंतिम से पूर्व के कार्बन पर -OH तथा -H के विन्यास से उस समय ज्ञात सभी मोनोसैकेराइडों को इस विन्यास से नाम दिया गया | परन्तु बाद में सभी यौगिकों पर इसका प्रयोग न हो सकने के कारण यह सफल नहीं हो सका |

(+) ग्लिसरैलडिहाइड की संरचना में -H तथा -OH चित्र की पहली संरचना के अनुसार हैं, जिसमे H तथा OH आगे की ओर दिष्ट (directed) हैं ,परन्तु (-)ग्लिसरैलडिहाइड में -H तथा -OH चित्र की दूसरी संरचना के अनुसार हैं तथा इसमें H तथा OH पीछे की ओर दिष्ट है | D या L के बाद ब्रैकेट में जो (+) या (-) लगा है उसको उस यौगिक के प्रकाशिक गुण के अनुसार लगाया गया है जिसमे (+) दक्षिणावर्त घूर्णन के लिए तथा (-) वामावर्त घूर्णन के लिए प्रयोग किया गया है | ध्रुवणघूर्णक चिन्ह (+) अथवा (-) विन्यास को प्रदर्शित नहीं करता है |

आपेक्षिक विन्यास के प्रयोग से अन्य असममित यौगिकों का D तथा L विन्यास

ऊपर के चित्र में कुछ यौगिकों की संरचनाएं हैं, जिसमें उनके D या L विन्यास दिए गए है | इन सभी उदाहरणों में अंतिम कार्बन से पहले वाले कार्बन पर -H तथा -OH के विन्यास के अनुसार D या L नाम दिया गया है | ध्यान रहे ब्रैकेट में लिखा (+) या (-) कुछ भी हो सकता है | उसका D तथा L विन्यास से कोई सम्बन्ध नहीं है | ब्रैकेट के आगे तथा पीछे हायफ़न – का प्रयोग किया गया है उसे माइनस (-) नहीं समझना चाहिए |

D तथा L विन्यास तथा d तथा l चिन्ह के प्रयोग में अंतर

अंगरेजी वर्णमाला के छोटे अक्षर में लिखे d तथा l का तात्पर्य उसकी प्रकाशिक सक्रियता से है | उदाहरण के लिए किसी यौगिक के नाम के आगे d लिखा होने का तात्पर्य है कि उस यौगिक के विलयन से जब समतल ध्रुवित प्रकाश की किरण गुजारी जाती है तो उस यौगिक के अणु समतल ध्रुवित प्रकाश के तल को दायीं ओर घुमा देते है अर्थात यौगिक दक्षिण ध्रुवण घूर्णक है या dextrorotatory है | dextrorotatory के लिए शार्ट में d लिखते हैं | इसी प्रकार वाम ध्रुवण घूर्णक के लिए laevorotatory लिखते है तथा शार्ट में l का प्रयोग करते है | अतः जब D अथवा L लिखा जाता है , उसके साथ जो + या – प्रयोग करते हैं वह क्रमशः dextrorotatory तथा laevorotatory ही है |

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